Tuesday 5 March 2019

घर के कमरों से करती हूं बाते तेरी
किससे सुनकर पुराने हस पड़ती हूं तेरे
तेरी तस्वीरो में खुद को देखती हूं
सच कहते है सब मुझसी दिखती हैं तू
रंगो से भरा तेरा आसमान लगता है
मेरी दुआओं सा लगता है
हैरान हूं जान कर
कैसे यादों को आंखों में छिपा लेती है
जो रो कर विदा करी थी कल
आज मुझको दूर रह कर हसा देती है
विदाई रस्म ही ऐसी है कि
तेरे आने का इंत़ार नहीं कर सकती

पर ताले बदले नहीं है मैने
सोचकर कि तेरे पास घर की चाबी है

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